तीखी कलम से

रविवार, 4 नवंबर 2018

क्या बता दूं कि तुझमे क्या देखा

कुछ   मुहब्बत तो  कुछ  गिला देखा ।
क्या  बता  दूँ  कि तुझमें  क्या  देखा ।।

अश्क आँखों  से  कुछ  ढला  देखा ।
दिल  कहीं  आपका  फ़िदा   देखा ।।

इक   पुरानी  किताब   खोली  तो ।
खत  कोई  आपका  लिखा  देखा ।।

तेरे   चेहरे   का    नूर    लौटा   है ।
जब  भी  तूने   वो  आइना  देखा ।।

बारहा   पूँछता    है   वो    मुझसे ।
आपने   क्या   बुरा   भला  देखा ।।

हट  गया  फिर यकीन  कुदरत  से ।
कोई    तारा    जो    टूटता   देखा ।।

जख्म  जो   थे  मिले  मुहब्बत  में ।
घाव  अब  तक  नहीं  भरा  देखा ।।

रात  ये  भी  सियाह  होगी  अब ।
गेसुओं   को   तेरे   खुला   देखा ।।

इस  तरह  बेनकाब   मत   चलिए।
फिर दिलो  से  धुआं  उठा  देखा ।।

बात   कुछ  तो  है  हुस्न   में  तेरी ।
बारहा    उनको    घूरता    देखा ।।

बेच    देती   है   आबरू  अपनी ।
भूख  को   मैंने   बे   हया   देखा ।।

सारी   दुनिया   गुलाम  है उनकी ।
हुस्न  वालो   को   लूटता   देखा ।।

मांग  बैठा  जो  वफ़ा  की कीमत।
आदमी  को  बहुत  ख़फ़ा  देखा।।

            नवीन मणि त्रिपाठी

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-11-2018) को "धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3146) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आ0 तिवारी जी सादर आभार ।
      आज मैंने 11 ग़ज़लें पोस्ट किया है । बाकी पर भी नजर करें ।

      हटाएं