तीखी कलम से

रविवार, 4 नवंबर 2018

वक़्त इतना सिखा गया है मुझे

2122    1212   112/22
फख्र से फिर  छला  गया  है  मुझे ।
ज़ह्र   बेशक  दिया  गया  है  मुझे ।।

वो सियासत में दांव चलचल कर ।
मकतलों तक बुला गया  है  मुझे ।।

फिर  मिटाने  की  साजिशें  लेकर ।
वो  गले  से  लगा  गया  है  मुझे ।।

खूब   करता    है  रोज   तकरीरें ।
रफ़्ता रफ़्ता जो खा गया है मुझे ।।

जिंदगी   एक    तिश्नगी   भर   है ।
वो हकीकत  जता  गया  है  मुझे ।।

छेड़ना  हक़  की  बात  मत  यारो ।
फैसला  वह  सुना  गया  है मुझे ।।

फ़िक्र का जिक्र करके ज़ालिम तो।
बेख़ुदी   में  जला  गया  है   मुझे ।।

हूँ   मैं खामोश  ज़ुल्म पर  कितना ।
सब्र  करना  तो आ  गया  है मुझे ।।

अब न कीजै  यकीन  जुमलों  पर ।
वक्त  इतना  सिखा  गया  है मुझे ।।

तुम  तरक्की  पे  मत  करो  चर्चा ।
कायदा  वो  पढ़ा   गया  है  मुझे ।।

तख़्त   देते   हैं  मन्दिरो   मस्जिद ।
राज   कोई   बता  गया   है  मुझे ।।

           नवीन मणि त्रिपाठी 
          मौलिक अप्रकाशित

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