तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

आपका जब से मेरे दिल मे ठिकाना बन गया

2122     2122     2122     212
आपका जब से मेरे दिल में ठिकाना बन गया ।
देखिए अंदाज  भी कुछ शायराना बन गया ।।

है जमीं की तिश्नगी का अब्र को अहसास कुछ ।
अब विसाले यार का मौसम सुहाना बन गया ।।

आरिजे गुल के चमन से जब चला तीरे नज़र ।
बेख़ता था दिल मेरा फिर भी निशाना बन गया ।।

उसको देखा है बदलते रंग गिरगिट की तरह ।
आदमी को देखिए कितना सयाना बन गया ।।

इश्क़ छुपता ही नहीं होने लगी सबको ख़बर ।
देखते ही देखते दुश्मन ज़माना बन बन गया ।।

कर दिया जिनका मैं चर्चा हुस्न की तारीफ़ में ।
उनके कानों तक न पहुँचाऔर फ़साना बन गया।।

बेसबब ही नफ़रतें बोई गईं होंगी यहां ।
फिर कोई शायर नगर में सूफियाना बन गया ।।

कुछ ज़रूरत आपकी थी कुछ ज़रूरत थी मेरी ।
उम्र की दहलीज़ पर रिश्ता घराना बन गया ।।

यूँ तो मैंने कर लिया था जाम से तौबा मगर ।
जब तुम्हें देखा तो पीने का बहाना बन गया ।।

आँख पर छाई अना और थी अदा बहकी हुई ।
आपका लहजा सनम जब क़ातिलाना बन गया ।।

नफरतों के दौर में फेंके गए पत्थर बहुत ।
जोड़ कर मेरा भी यारो आशियाना बन गया ।।

        ---डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
              मौलिक अप्रकाशित

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