तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

बहुत से लोग बेघर हो गए हैं

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बहुत  से  लोग  बेघर   हो  गए  हैं ।
सुना   हालात  बदतर  हो  गए  हैं ।।

मुहब्बत उग नहीं सकती यहां पर ।
हमारे   खेत  बंजर   हो  गए   हैं ।।

पता हनुमान  की  है  जात जिनको।
सियासत  के  सिकन्दर हो गए हैं ।।

यहां  हर  शख्स   दंगाई   है  यारो ।
सभी के  पास  ख़ंजर  हो  गए  हैं ।।

सलीका ही नहीं चलने का जिनको ।
वही  भारत के  रहबर  हो गए  हैं ।।

लुटेरे  मुल्क़   में  बेख़ौफ़  हैं   अब ।
बदन पर सब के खद्दर  हो  गए हैं ।।

मेरा धन  लूट कर देते जो तुमको ।
वही  हाकिम  मुकर्रर  हो   गए  हैं ।।

करप्शन   की  सुनामी  देखिए  तो ।
नदी   नाले   समंदर   हो   गए  हैं ।।

कलम  यूँ  ही उगलती आग कब है ।
मुझे  भी  गम  मयस्सर  हो  गए हैं ।।

अदालत में  तो उसकी  हार तय है ।
तुम्हारे  साथ अफ़सर  हो  गए  हैं ।।

       डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी 
      मौलिक अप्रकाशित

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