तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा

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पूछ   मुझसे  न  सरे  बज़्म  यहाँ  क्या   होग़ा । 
महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा ।।

बाद  मुद्दत  के  दिखा  चाँद  ज़मीं  पर .कोई ।
आप   गुजरेंगे  गली  से  तो  ये  चर्चा  होगा ।।

वो जो बेचैन सा दिखता था यहां कुछ दिन से ।
ज़ह्न  में   उसके  तेरा  अक्स  ही उभरा  होगा।।

रोशनी सी जो दरीचे  से  नज़र आती  है ।
तज्रिबा कहता  है  वो चाँद का टुकड़ा होगा ।।

जानता होगा तेरे हुस्न की फितरत वो सनम ।
हाल  रह  रह  के  कई बार  जो .पूछा  होगा ।।

हिचकियाँ  याद की गहराइयों से  वाक़िफ़ थीं ।
हो न हो उसने  मुझे  दिल  से  पुकारा  होगा ।।

मेरे आने  की  खबर  पा  के यकीनन  उसने ।
गेसुओं  को   तो  सलीके  से सँवारा होगा ।।

वक्त करता ही नहीं रहम  किसी  पर सुन ले ।
गर  ढला  हुस्न  जरा  सोच  तेरा  क्या होगा ।।

भूल   पाएंगे  वफाओं   को  भला  वो   कैसे ।
जिक्र  उनसे  तो  मेरा  शह्र .भी करता होगा ।।

मेरे  दिल  पे  ही  न   इल्ज़ाम .लगाया .जाए ।
कुछ तो नजरों से  किया  उसने इशारा होगा ।।

        डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी

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