तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

धुँआ रफ़्ता रफ़्ता है घर से उठा कुछ

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दिया  आप   ने  था  हमें   जो   सिला  कुछ । 
 बड़ा   फैसला   हमको   लेना  पड़ा  कुछ ।।

कहा किसने अब तक नहीं है  जला  कुछ ।
धुंआ  रफ़्ता  रफ़्ता  है  घर  से  उठा कुछ ।।

बहुत  हो  चुकी  अब  यहाँ  जुमले  बाजी ।
तुम्हारे  मुख़ालिफ़   चली   है  हवा  कुछ ।।

बहुत  दिन  से  ख़ामोश  दिखता है मंजर ।
कई   दिल   हैं  टूटे  हुआ   हादसा  कुछ ।।

कदम मंजिलों की  तरफ  बढ़  गए  जब ।
तो अब पीछे मुड़कर है क्या देखना कुछ।।

मेरा   ऐब    सबको   बताने    से   पहले ।
जरा   देखिए   आप  भी  आइना   कुछ।।

मेरे   कत्ल  पर   तो    उँगलियाँ   उठेंगी ।
करें   इत्तला  सबको  मेरी   ख़ता  कुछ ।।

करेंगे यकीं  कब  तलक लोग  तुम पर ।
मिला  ज़ख़्म तुमसे  कई  मर्तबा  कुछ ।।

ज़माने की नजरें ख़फ़ा  सी  लगीं   तब ।
तेरी शाख पर जब भी चर्चा हुआ कुछ।।

यहां छीन कर ही  मिला है कोई   हक ।
करो जंग  हो  गर बचा हौसला  कुछ ।।

तुम्हारे   ये   हालात   बदले   न     होते ।
अगर  याद  करते  हमारी  वफ़ा कुछ ।।

           --नवीन मणि त्रिपाठी

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