तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

गिला करूँ मैं कहाँ तक यहां ज़माने से

1212 1122 1212 22
हर एक शख्स को मतलब है बस ख़ज़ाने से ।
गिला  करूँ  मैं  कहाँ  तक  यहां  ज़माने से ।।

कलेजा अम्नो  सुकूँ  का  निकाल  लेंगे  वो ।
उन्हें   है  वक्त  कहाँ  बस्तियां  जलाने   से ।।

न  पूछ  हमसे  अभी  जिंदगी  के  अफसाने ।
कटी  है   उम्र   यहां   सिसकियां  दबाने  से ।

मैं  अपने  दर्द  को बेशक़  छुपा के  रक्खूँगा ।
मिले   जो   चैन   तुझे    मेरे  मुस्कुराने   से ।।

हमारे  हक़  पे न  हमला करो  यहां साहब ।
चलेगा  मुल्क़  नहीं  इस  तरह  चलाने  से ।।

वो रूठते हैं तो कुछ और आना जाना रख ।
बनेग़ा   यार  कोई   सिलसिले  बनाने  से ।।

बड़ें यकीन से कहकर  गया है फिर कोई ।
खुदा   मिलेंगे  तुझे   दूरियां   मिटाने  से ।।

भरम   बनाए  रखें   दोस्ती  का  दुनिया में ।
ये  रिश्ते  टूट  न  जाएं   यूँ   आजमाने  से ।। 

उसे पता है हवाओं का रुख  किधर  है अब ।
बुझेगी  आग  यहां  आग  फिर  लगाने  से ।।

ये आंख कुछ तो बताती हैआपकी फ़ितरत ।
छुपा   है    दर्द  कहाँ  आपके   छुपाने   से ।।

अजीब  दौर  है  इंशानियत  नहीं  दिखती ।
ज़मीर   बेच  रहे   लोग   फ़िर  बहाने  से ।।
       
       -- नवीन मणि त्रिपाठी

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