तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

टूटा पत्ता दरख़्त का हूँ मैं

2122 1212 22
इक  ठिकाना  तलाशता  हूँ  मैं ।
टूटा   पत्ता  दरख़्त  का  हूँ   मैं ।।

कुछ तो मुझको पढा करो यारो ।
वक्त  का एक फ़लसफ़ा हूँ   मैं ।।

हैसियत  पूछते  हैं  क्यूं  साहब ।
बेख़ुदी   में   बहुत  लुटा  हूँ  मैं ।।

इश्क़ की बात आप मत करिए ।
रफ़्ता रफ़्ता सँभल चुका हूँ मैं ।।

चाँद इक  दिन उतर  के  आएगा ।
एक   मुद्दत  से  जागता  हूँ  मैं ।।

खेलिए मुझसे पर सँभल के जरा।
इक खिलौना सा काँच का हूँ मैं ।। 

रूठ जाती  है  बेसबब  किस्मत ।
यह  ज़माने  से  देखता  हूँ  मैं ।।

वो  लगाते  हैं  आग  शिद्दत  से ।
देखिए अब तलक जला  हूँ  मैं ।।

ऐ  मुसाफ़िर  जरा मेरी भी सुन ।
काम आए  वो  तज्रिबा  हूँ  मैं ।।

रह गया उम्र भर जो अनसुलझा।
जिंदगी   तेरा  मसअला   हूँ  मैं ।।

इतना  आसां  नहीं  मुकर  जाना ।
आपका ही तो सिलसिला हूँ  मैं ।।

      --नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें