तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

बना रक्खी है उसने बीच मे दीवार जाने क्यों

हुआ अब तक नहीं कुछ हुस्न  का दीदार  जाने  क्यों ।
बना  रक्खी   है  उसने  बीच   मे   दीवार  जाने  क्यों ।।

मुहब्बत थी या फिर मजबूरियों  में  कुछ जरूरत थी ।
बुलाता   ही   रहा  कोई  मुझे  सौ  बार  जाने  क्यों ।।

यहाँ तो इश्क बिकता है यहां दौलत  से  है मतलब ।
समझ  पाए  नहीं  हम भी  नया बाज़ार जाने क्यों ।।

तिजारत रोज  होती  है  किसी के जिस्म  की  देखो ।
कोई करने  लगा है आजकल  व्यापार जाने  क्यों ।।

कोई दहशत है या फिर वो  कलम को  बेचकर बैठे ।
बहुत ख़ामोश  होते  जा  रहे  अख़बार  जाने  क्यों ।।

हर इक इंसान में नफरत सियासत बो गयी  शायद ।
जलेगा मुल्क मुद्दत तक लगा आसार  जाने  क्यों ।।

वो पढ़ लिख कर निवाले के लिए मोहताज़ है देखो ।
यहां सुनती नहीं  कुछ  बात को सरकार जाने क्यों ।।

बड़ी उम्मीद  थी  वो  मुल्क़  की  सूरत  बदल   देंगे ।
लगे  हैं  लोभ   के  आगे  वही  लाचार  जाने  क्यों ।।

तरक्की  हो  चुकी  है  मान   लेता  हूँ मगर  साहब ।
यहां  रोटी  पे  होती  है बहुत  तक़रार  जाने  क्यों ।।

बगावत  कर  चुके  है  जब  रहेंगे  हम  सदा बागी ।
फरेबी  दे  रहे  अब  झूठ  का  उपहार  जाने क्यों ।।

वो चिड़िया उड़ गई जब आपको अपना समझते थे ।
जमाते  आप  मुझ पर  हैं कोई अधिकार जाने क्यों ।।

     - नवीन मणि त्रिपाठी

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