तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

जलता चराग हूँ मैं हवाएं मुझे न दो

221     2121      1221       212

इतनी  मेरे  करम  की  सजाएं   मुझे   न   दो ।
जलता    चराग   हूँ  मैं   हवाएं  मुझे   न  दो ।।

कर दे कहीं न  ख़ाक मुझे तिश्नगी की आग।
हो   दूर    मैकदा   ये   दुआएं   मुझे   न  दो ।।

जीना मुहाल कर दे यहां खुशबुओं का  दौर ।
घुट जाए  मेरा  दम  वो  फ़जाएँ  मुझे  न दो ।।

यूँ  ही तमाम  फर्ज  अधूरे  हैं  अब  तलक ।
सर  पर अभी  से और  बलाएँ  मुझे न दो ।।

पूछा  करो  गुनाह  कभी  अपनी  रूह  से ।
गर   बेकसूर   हूँ  तो  सजाएं   मुझे  न  दो ।।

इतना भी कम नहीं कि तग़ाफ़ुल में जी रहा ।
यूँ महफिलों में अपनी जफाएँ मुझे न दो ।।

कर लोगे तुम वसूल  मेरे जिस्म  से भी सूद ।
ख़ैरात  कह  के  और  वफ़ाएँ  मुझे  न  दो ।।

कुछ  तो शरारतें थीं तुम्हारी अदा की  यार ।
मुज़रिम बना के सारी  खताएँ  मुझे  न दो ।।

गर बेसबब  ही  रूठ के  जाना  तुम्हें  है  तो ।
हर  बार  दूर  जा  के  सदाएं   मुझे   न  दो ।।

खुश हूँ मैं आज हिज्र के भी दरमियाँ  बहुत ।
बीमारे   ग़म  की  यार  दवाएं   मुझे  न  दो ।।

               डॉ नवीन मणि त्रिपाठी 
                मौलिक अप्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें