तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

क़ज़ा के वास्ते ये

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क़ज़ा  के  वास्ते  ये  इंतिज़ाम  किसका  है ।
तेरे   दयार   में  जीना   हराम  किसका  है ।।

खुशी  अदू  को  बहुत  है  जरा  पता  कीजै ।
बड़े  सलीके  से  आया  सलाम किसका  है ।।

दिखे  हैं  रिन्द  बहुत  तिश्नगी के साथ वहाँ ।
कोई  बताए  गली  में  मुकाम  किसका  है ।।

जो  बेचता   था  सरे  आम  जिंदगी  अपनी ।
खबर तो कर वो अभीतक गुलाम किसका है।।

वो  पूछ  बैठे  हमीं  से  यूँ  अजनबी   बनकर ।
के उनके हुस्न पे लिक्खा कलाम किसका है ।।

यही  सवाल  है साकी  से  आज महफ़िल में ।
छलक  गया  जो सरे बज़्म जाम किसका है ।।

फ़ना  हुए  जो वतन  पर  वो  नाम भूल  गए ।
तुम्हारे मुल्क़ में अब  एहतराम  किसका  है ।।

ग़रीब  आज  भी भूखा मिला है फिर मुझको ।
यहां  फ़िज़ूल  का ये  ताम-झाम किसका  है ।।

        -डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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