तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

कोई रिश्ता पुराना चल रहा है

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अभी  तक आना जाना चल रहा है ।
कोई  रिश्ता  पुराना  चल  रहा  है ।।

सुना  है  शह्र   की  चर्चा  में  आगे ।
तुम्हारा ही  फ़साना  चल  रहा  है ।।

इधर  दिल पर लगी  है चोट  गहरी ।
उधर  तो  मुस्कुराना  चल  रहा  है ।।

कहीं तरसी  जमीं  है आब के बिन ।
कहीं  मौसम  सुहाना  चल  रहा है ।।

तुझे  बख़्शा  खुदा  ने  हुस्न  इतना ।
तेरे   पीछे  ज़माना  चल   रहा  है ।।

दिया  था  जो  वसीयत में तुम्हें क्या ।
अभी  तक वह  खज़ाना  चल रहा है ।।

तुम्हारे     मैक़दे    में    देखता   हूँ ।
बहुत  पीना  पिलाना  चल  रहा है ।।

ग़ज़ल को गुनगुनाने की थी हसरत ।
तसव्वुर  में   तराना  चल   रहा   है ।।

यूँ   उसकी  शायरी  पे  जाइये  मत । 
वहाँ  मक़सद  रिझाना  चल  रहा  है ।।

अरूज़-ओ-फ़न से अब डरना है कैसा।
तुम्हारे   साथ   दाना  चल  रहा   है ।।

शराफ़त  बिक  रही बाज़ार  में अब ।
शरीफ़ों  का   बयाना  चल  रहा  है ।।

       डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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