तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

इक बार कहीं दिल तो लगाना ही चाहिए



****ग़ज़ल **

221 2121 1221 212

उनको    चिराग़े  इश्क़   जलाना  ही  चाहिए ।
अब  तो  मेरे  दयार  में  आना  ही  चाहिए ।।

 हिन्दू  हो या  मुसलमाँ  वो इंसान ही  तो  है ।
अब  फ़ासला दिलों का मिटाना ही चाहिए ।।

समझोगे कैसे इश्क़ की बारीकियों  को  यार ।
इक बार  कहीं  दिल तो लगाना ही चाहिए ।।

प्यासी जमीं को  देख के  इतरा न इस तरह ।
बादल तुझे बरस के तो  जाना  ही चाहिए ।।

माना   कि   ज़िंदगी  में   मयस्सर नहीं  खुशी ।
फिर  भी  नई  उमीद  जगाना  ही  चाहिए ।।

गर खिल चुका है गुल तो मुक़द्दर तू आजमा ।
ख़ुश्बू से तितलियों को रिझाना ही चाहिए ।।

कीचड़  में  डालता  है तू  पत्थर जो रौब  से ।
छींटा  तेरे  वजूद  तक  आना  ही चाहिए ।।

बख़्शा  उसे  है  हुस्न  ख़ुदा  ने जो बेहिसाब ।
उसको  फ़ज़ा में  जश्न  मनाना  ही चाहिए ।।

गर चाहते  हो  जिंदगी  का लुत्फ़ हो जवां ।
तुमको  विसाले यार   बनाना   ही चाहिए ।।

           नवीन

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