तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

इश्क़ उसे जब खेल तमाशा लगता है

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बादल  का अंदाज जुदा  सा  लगता  है ।
सावन  सारा   सूखा   सूखा  लगता  है ।।

जाने  क्यूँ   मरते  हैं   उस  पर   दीवाने ।
इश्क़  उसे जब खेल तमाशा लगता है ।।

 काहकशाँ  से  टूटा जो  इक  तारा  तो ।
चाँद  का  चेहरा  उतरा उतरा लगता है ।।

तेरी  अना से  टूट  रहा  है  वह  रिश्ता ।
जिसकी ख़ातिर एक ज़माना लगता है ।।

आग से मत खेला  करिए चुपके  चुपके ।
घर  जलने   में  एक  शरारा   लगता  है ।।

दर्द विसाले  यार  ने  ख़त  में  है  लिक्खा ।
उस पर सुबहो शाम का पहरा लगता है ।।

छुप छुप कर सबने देखा रोते जिसको ।।
उसके दिल का  ज़ख़्म पुराना लगता है ।

शम्अ जलेगा परवाना इक दिन तुुुझ से ।
हुस्न  का   तेरे  ये  दीवाना   लगता  है ।।

मांग रहा है वफ़ा के  बदले  जान  कोई ।
कैसे   कह  दूं   नेक  इरादा  लगता  है।।

तुझको सारी रात  निहारा करते  हम ।
चाँद  बता  तू  कौन  हमारा  लगता है ।।

लिख  डाला  है  तुमने जो कुछ  पन्नों  में ।
यह   तो  मेरा   एक  फ़साना  लगता   है ।।

शब्दार्थ -
काहकशाँ शुद्ध फ़ारसी शब्द उर्दू में कहकशाँ हिंदी में तारामंडल

शरारा -चिंगारी

      डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
       मौलिक अप्रकाशित

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