तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

अब तो पर्दा उठा दिया जाए

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अब  तो   पर्दा  उठा  दिया   जाए ।
ज़ख़्म  दिल  का दिखा दिया जाए ।।

ऐ   समुंदर   तेरे    लिए   दरिया  ।
दांव पर  क्यूँ  लगा  दिया   जाए ।।

सबकी  नीयत   खराब  देखी  है ।
किसको कलमा पढा दिया जाए ।।

ईद    का   इंतज़ार   है   उसको ।
बाम  पर  चाँद  ला  दिया  जाए ।।

 ऐ   ग़ज़ल    तेरे   कद्रदानों   में ।
नाम   मेरा   लिखा   दिया  जाए ।।

ई 0वी एम 0 तो  मशीन   है  यारो।
दोष  उस  पर   मढ़ा   दिया  जाए।।

बात   बढ़  जाये  न  कहीं  ज्यादा ।
मसअला  को   दबा    दिया।  जाए ।।

रिन्द  की  तिश्नगी  भी  जायज है ।
मैकदे   को  लुटा   दिया   जाए ।।

इस कदर  हिज्र  में वो  तड़पा  है ।
जैसे   नश्तर   चुभा  दिया  जाए ।।

दिल जलाने की है अगर साजिश ।
रूख़ से चिलमन हटा दिया जाए ।।

मौत  के  बाद  रूह  की ख्वाहिश ।
पैरहन   इक   नया  दिया   जाए ।।

पैरहन - वस्त्र 

- नवीन मणि त्रिपाठी 
 मौलिक अप्रकाशित

चित्र -गूगल से

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