तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

याद फिर गुज़रा ज़माना आ गया

जब  जुबां पर वह तराना आ गया ।
याद फिर  गुजरा ज़माना आ गया ।।

शब के आने की हुई  जैसे  खबर ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।

मैकदे को शुक्रिया कुछ तो कहो।
अब तुम्हें पीना पिलाना आ गया ।।

वस्ल की इक रात जो मांगी यहां ।
फिर तेरा लहजा पुराना आ गया ।।

छोड़ जाता मैं तेरी महफ़िल मगर ।
बीच  मे  ये  दोस्ताना  आ  गया ।।

जब  भी गुज़रे  हैं गली से  वो मेरे ।
फिर तो मौसम क़ातिलाना आ गया ।।

आरिजे गुल पर तबस्सुम देख कर ।
तितलियों को भी रिझाना आ गया ।।

उठ रहीं जब से कलम पर उँगलियाँ ।
और  चर्चा  में  फ़साना  आ  गया ।।

कुछ तेरी सुहबत का शायद है असर ।
ज़िंदगी  को   मुस्कुराना  आ   गया ।।

हुस्न जब दाखिल हुआ महफ़िल में तब।
शायरों   का  आबो  दाना  आ गया ।

बदला बदला आपका है ये मिज़ाज ।
हाथ में  क्या फिर  खज़ाना आ गया ।।

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