तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

फ़ासले बेक़रार करते हैं

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फासले      बेकरार    करते    हैं ।
और   हम   इतंजार   करते    हैं ।।

इक तबस्सुम को लोग जाने क्यूँ ।
क़ातिलों   में   शुमार  करते   हैं ।।

सिर्फ   धोखा  मिला  ज़माने   से ।
जब   भी हम  ऐतबार   करते  हैं ।।

मैं तो  इज्ज़त  बचा के  चलता हूँ ।
और   वह   तार   तार  करते   हैं ।।

उनको  गफ़लत   हुई   यही  यारो ।
इश्क़   हम  से   हजार  करते  हैं ।।

हुस्न  की   बेसबब  नुमाइश  कर ।
गुल  खिंजा  को  बहार  करते  हैं।।

अब मुहब्बत की बात क्या करना ।
जब वो  खंजर पे  धार  करते  हैं ।।

हाले  दिल अब  न  पूछिये  हमसे ।
आप   तो    इश्तिहार   करते   हैं ।।

कितने  शातिर  हैं  शह्र  वाले  ये ।
पीठ   पे   रोज   वार  करते   हैं ।।

बेचते  अब   ज़मीर  दौलत   पर ।
वो   यही   कारोबार   करते   हैं ।।

कुछ  वफाओं  का  वास्ता  देकर ।
लोग दिल का  शिकार  करते  हैं  ।।

       डॉ नवीन मणि त्रिपाठी 
         मौलिक अप्रकाशित

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