तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

और कितनी अभी अर्थियां चाहिए

212 212 212 212 

क्यूँ   हमें  बारहा  सिसकियां    चाहिए ।
और   उनको   बड़ी   कुर्सियां चाहिए ।।

देश  ख़ामोश   कब   तक  रहेगा  यहां ।
और  कितनी अभी  अर्थियां  चाहिए ।।

जो  वतन  को  मुहब्बत  का  पैगाम दें ।
इस तरह  मुल्क़  में  बस्तियां  चाहिए।।

बच न  जाए कहीं  कातिलों   का  जहां ।
जंग की अब हमें  झलकियां  चाहिए ।।

सिर्फ अखबार तक आपकी है  नज़र ।
आपको  तो  बहुत  सुर्खियाँ  चाहिए ।।

वो समझते हैं  बारूद  के  शब्द   को ।
हाथ में अब  नहीं  तख्तियां  चाहिए ।।

चन्द    गुंजाइशें   क्यूँ   बचें   बात   की ।
बंद  हमको  सभी  खिड़कियाँ  चाहिए ।।

अब शराफ़त की  बातें  बहुत हो चुकीं।
दुश्मनी   आपके    दरमियाँ    चाहिए ।।

कुछ तो करके दिखाएँ वतन को  जरा ।
अब  नहीं आपकी  धमकियाँ  चाहिए ।।

पीस का तमगा  बेशक़  मुबारक  तुम्हें ।
पर  हमें   जीत   की  बाजियाँ चाहिये ।।

        -डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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