तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

ग़ज़ल

क्यों  अदू  के  साथ  ही  बनते  गए  रिश्ते कई ।
टूट  कर  देखा  शज़र  से  उड़  गए  पत्ते कई ।।

चुग गई जब खेत चिड़िया क्या करेंगे लोग अब ।
हाथ  को  मलते हुए अब  देखिए  मिलते  कई ।।

मुल्कमें दहशत का आलम हर तरफ खामोशियाँ  
गिर  गयी हो जब सियासत नाग तो डसते कई।

किस तरह से मुल्क हो आज़ाद इस आतंक से
जब   हमारे  देश  मे  गद्दार   ही पलते   कई ।।

हरकतें  तुमने तो कर दी अब रहो  तैयार  तुम ।
अब  पड़ेंगे   गाल  पर  तेरे  यहां  जूते  कई ।।

ऐ   भिखारी   चादरें   फैला के  तू  जिंदा  यहां ।
बिक चुकी  तेरी  रियासत दिख रहे  बिकते कई ।।

कोई महबूबा हो फारूक या कोई  सिद्धू  दिखे ।
देश  की  बेशक  दलाली   नीच  हैं  करते  कई ।।

अब इरादा कर लिया है कुछ सबक तुझको मिले,
हौसलों  से   हमने   देखे  हैं  किले  ढहते  कई ।।

              जय हिंद

(अदू - दुश्मन)

              जय हिंद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें