तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

कुछ तो जीने का सहारा चाहिए

2122 2122 212

हुस्न   का  बेहतर   नज़ारा   चाहिए ।
कुछ   तो  जीने  का  सहारा  चाहिए ।।

हो मुहब्बत  का  यहां  पर श्री गणेश ।
आप  का  बस  इक  इशारा चाहिए ।।

हैं  टिके रिश्ते सभी दौलत पे जब ।
आपको  भी  क्या  गुजारा  चाहिए ।।

है  किसी  तूफ़ान  की  आहट  यहां ।
कश्तियों  को अब  किनारा चाहिए ।।

चाँद  कायम  रह  सके  जलवा  तेरा  ।
आसमा  में   हर   सितारा   चाहिए ।।

फर्ज  उनका  है तुम्हें  वो  काम  दें ।
वोट जिनको  भी  तुम्हारा  चाहिए ।।

अब न  लॉलीपॉप  की  चर्चा  करें ।
सिर्फ  हमको  हक़  हमारा चाहिए ।।

कब तलक लुटता रहे इंसान यह ।
अब  तरक्की  वाली धारा चाहिए ।।

जात  मजहब ।से  जरा ऊपर उठो ।
हर  जुबाँ  पर ये ही  नारा चाहिए ।।

अम्न  को घर  में जला  देगा कोई ।
नफरतों  का  इक  शरारा  चाहिए ।।

शब्दार्थ - शरारा - चिंगारी 
      - नवीन मणि त्रिपाठी

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