तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

ग़ज़ल

122 122 122 122
परिंदे  को  गुल  पे  फुदकने  दो  यारो ।
इसे  इश्क़  में  कुछ  बहकने  दो यारो ।।

अभी क्या  बताऊँ  है  रुख़सार  कैसा ।
हया  का  ये  पर्दा  सरकने  दो  यारो ।।

जलूँगा वो इक दिन मुहब्बत में  बेशक़ ।
लगी  आग  थोड़ी  दहकने  दो  यारो ।।

सुना   है  वो  महफ़िल  आने  लगे   हैं ।
ज़रा दिल को अब तो धड़कने दो यारो ।।

यूँ शरमा के प्यारा  क़मर  छुप न  जाये ।
मेरा  चाँद  छत पे  चमकने  दो  यारो ।।

वो कमसिन शरारत अजब शोख नजरें ।
उन आंखों से मय को छलकने दो यारो ।।

बड़ी नासमझ  है  वो   पगली  दिवानी।
उसे  दर  बदर  अब भटकने  दो यारो ।।

कली  शाख  पर  मुस्कुराने   लगी   है ।
फ़िज़ा में  उसे कुछ महकने  दो यारो ।।

अगर डर  है उनको मेरी  चाहतों  से ।
उन्हें अपने चेहरे को ढकने  दो यारो ।।

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