तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

हुज़ूर मुफ़्त में वो मिहरबान थोड़ी है



1212 1122 1212 22

हमारे इल्म  का  वो  क़द्रदान  थोड़ी है ।
हमें  दे  रोटियां  कोई  महान  थोड़ी है ।।

उसे है बेचना हर ईंट इस इमारत की ।
हुज़ूर मुफ़्त में वो मिह्रबान थोड़ी है ।।

विकास सब का हो और साथ भी रहे सबका ।
ये राजनीति है पक्की ज़ुबान थोड़ी है ।।

लुढ़क रहे हैं ख़ज़ाने ये फ़िक्र कौन करे ।
नज़र में उनके अभी तक ढलान थोड़ी है ।।

बदल गया है बहुत कुछ यहां सँभल के चलो ।
पुराना वाला ये हिंदोस्तान थोड़ी है ।।

मशीन वोट की कर देगी फैसला हक़ में ।
तुम्हारे हाथ में सारी कमान थोड़ी है ।।

बहा ले जायेंगी  मौजें तुम्हें समंदर की ।
तुम्हारे वास्ते  ऊँचा मचान थोड़ी है ।।

उड़ान   कैसे  भरेंगे  नए  परिंदे   ये।
अब उनके नाम कोई आसमान थोड़ी है ।।

जो मन में आए वही कीजिये यहाँ साहब ।
अभी चुनाव का आया रुझान थोड़ी है ।।

          - नवीन मणि त्रिपाठी

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