तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

जिसको हासिल तुम्हारी क़ुरबत है

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मत  कहें  आप  दौरे   गुरबत   है ।
चश्मेतर  हूँ  ये   वक्ते  फ़ुरक़त  है ।।

कुछ तो भेजी खुदा ने  आफ़त है ।
ये  तबस्सुम  है  या  क़यामत  है ।।

उसकी किस्मत को दाद  देता  हूँ ।
जिसको हासिल तुम्हारी कुर्बत है ।

अलविदा  मत  कहें  हुजूर  अभी ।
बज़्म   को  आपकी  ज़रूरत  है ।।

इश्क़  में  क्या  बताऊँ  मैं  तुमको ।
थोड़ी  उल्फ़त है बाकी तुहमत है ।।

कैसे आज़ाद  कह  दूं मैं  खुद को ।
दिल पे अब  तक  तेरी हुक़ूमत है ।।  

फिक्र  मुझको  रक़ीब की तब तक ।
हुस्न  जब तक  तेरा  सलामत है ।।

कुछ  तो  इल्ज़ाम  तुझ पे आएगा ।
ये तो  दुनिया  है इसकी आदत है ।।

तब   मिली  है  शिकस्त  आंखों को ।  
जब  भी  अश्क़ों  ने  की  बगावत  है ।।

ख्वाहिशें  सबकी अपनी  अपनी हैं ।
हाशिये   पर    यहाँ   मुहब्बत   है ।।

शब्दार्थ 
ग़ुरबत - पथिक की विवशता ,प्रवास 
चश्मेतर - भीगी आंखे
फुरकत - वियोग जुदाई 
क़ुरबत - सामीप्य निकटता
तुहमत - आरोप 
उल्फ़त - प्यार 
रक़ीब - दुश्मन

           नवीन मणि त्रिपाठी
           मौलिक अप्रकाशित

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