तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

हर अदा ए इश्क़ का दिल तर्जुमा करता रहा

2122 2122 2122 212

कुछ मुहब्बत कुछ शरारत और कुछ धोका रहा ।
हर  अदा ए इश्क़ का दिल तर्जुमा  करता  रहा ।।

याद है अब  तक  ज़माने  को  तेरी  रानाइयाँ ।
मुद्दतों  तक  शह्र   में  चलता तेरा  चर्चा  रहा ।।

पूछिए उस से  भी साहिब इश्क़ की  गहराइयाँ ।
जो किताबों की तरह पढ़ता कोई  चहरा  रहा ।। 

वो मेरी पहचान खारिज़ कर गया है शब के बाद ।
जो मेरे खाबों में  आकर  गुफ्तगू  करता  रहा ।।

साजिशें रहबर की थीं या था मुकद्दर का कसूर ।
ये मुसाफ़िर रहगुज़र  में  बारहा  लुटता  रहा ।।

वो परिंदा  क्या बताएगा  फ़लक  की  दास्ताँ ।
जो कफ़स के दरमियाँ हालात से लड़ता रहा ।।

तब्सिरा तू कर गया जख्मों पे  मेरे किस  तरह ।
जब  तेरे  रुख़सार  पर  कायम  तेरा पर्दा रहा ।।

तीरगी को रोकना मुमकिन कहाँ था दोस्तो ।
स्याह शब के वास्ते  जब शम्स ही ढलता रहा ।।

आपकी तिरछी नजर यूँ कर गयी मुझ पर असर ।
उम्र भर मैं बेख़ुदी में बस ग़ज़ल कहता रहा ।।

       -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

शब्दार्थ 
अदाए इश्क - इश्क़ की अदा
तर्जुमा - अनुवाद ट्रांसलेशन
रानाइयाँ - सुंदरता , शब - रात , गुफ्तगू - बातचीत ,  रहबर - राह बताने वाला गाइड ,  रहगुज़र - रास्ता , बारहा - बार बार ,  फ़लक - आसमान , कफ़स - पिजरा , दरमियाँ - के बीच , तब्सिरा - कमेंट , रुख़सार - चेहरा , तीरगी - अंधेरा , स्याह,  शब - काली रात , बेख़ुदी - खुद का ख्याल न रहना , 
पेंटिंग चित्र - साभार गूगल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें