तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

जब दिखायेगा तुझे चेहरे का मंजर आईना

2122 2122 2122 212

अब न चहरे की शिकन  कर दे उजागर आइना ।
देखता  रहता है कोई  छुप  छुपा कर आइना ।।

गिर  गया  ईमान उसका  खो गये सारे  उसूल ।
क्या दिखायेगा  उसे  अब और कमतर आइना ।।

सच  बताने  पर  सजाए  मौत की ख़ातिर यहां ।
पत्थरो  से   तोड़ते   हैं   लोग अक्सर  आइना ।

आसमां  छूने  लगेंगी ये अना और शोखियां ।
जब  दिखाएगा  तुझे  चेहरे  का मंजर आइना ।।

अक्स  तेरा  भी  सलामत  क्या रहेगा सोच ले ।
गर  यहां  तोड़ा कभी  बनके सितमगर  आइना ।।

फूल से आरिज पे है तेरे  कोई गहरा  निशान ।
अब दिखायेगा ज़माना मुस्कुरा कर आइना ।।

खुद के बारे में बहुत अनजान होकर जी रहा ।
आजकल रखता कहाँ इंसान बेहतर आइना ।।

तोड़ देंगे आप भी यह हुस्न ढल जाने के बाद ।
एक दिन बेशक़ चुभेगा बन के निश्तर आइना ।।

कुछ तो उसकी बेक़रारी का तसव्वुर कीजिये ।
जो सँवरने के लिए देखे है शब भर आइना ।।

हैं लबों पर जुम्बिशें क्यूँ इश्क़ के इज़हार पर ।।

जब  बताता  है तुझे  तेरा  मुक़द्दर आइना ।।

      नवीन मणि त्रिपाठी

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