तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

बेशक़ बहार होगी मेरे हमनवा के साथ

221  2121  1221 212 
मुद्दत  के बाद आई है ख़ुश्बू सबा के साथ ।
बेशक़ बहार होगी मेरे हमनवा के साथ ।।

शायद मेरे सनम का वो इज़हारे इश्क था ।
यूँ ही नहीं झुकी थीं वो पलकें हया के साथ ।। 

वो शख्स कह रहा है मुझे बेवफ़ा सुनो ।
जो ख़ुद निभा सका न मुहब्बत वफ़ा के साथ ।।

माँगी मदद जरा सी तो लहज़े बदल गए ।
रिश्ता बता रहे थे जो अपना ख़ुदा के साथ ।।

आँखों में साफ़  साफ़  सुनामी की है झलक।
कुछ तो ग़लत हुआ है तुम्हारी फ़ज़ा के साथ ।।

कुदरत सिखाए जो भी हुनर सीखिए हुजूऱ ।
कटती नहीं है  जिंदगी केवल दुआ के साथ ।।

आएगी एक दिन वो बुलाने के वास्ते ।
रिश्ता है जिंदगी का यकीनन क़ज़ा के साथ ।।

अम्नो सुकूँ के साथ यहाँ जी रहे हैं लोग ।
निकलो  न घर से रोज़ यूँ क़ातिल अदा के साथ ।।

चेहरा बता रहा है तुम्हारी खुशी का राज़ ।
गुज़रेगा आज वक्त कहीँ दिलरुबा के साथ ।।

            -नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें