तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

इक ग़ज़ल गुनगुनाओ सो जाओ

***** ग़ज़ल *****

2122 1212 22
इक  ग़ज़ल  गुनगुनाओ  सो  जाओ ।
फ़िक्र  दिल  से  उड़ाओ  सो जाओ ।।

शमअ   में  जल  गए   पतंगे   सब ।
इश्क़  मत  आज़माओ  सो जाओ ।।

यादें   मिटतीं   नहीं  अगर  उसकी ।
ख़त  पुराने  जलाओ  सो   जाओ ।।

रात  काफ़ी   गुज़र  चुकी  है  अब ।
चाँद  को  भूल  जाओ  सो जाओ ।।

उसने  तुमको  गुलाब  भेज   दिया ।
गुल को दिल से लगाओ सो जाओ ।।

उल्फ़तें   बिक  रहीं  करो  हासिल ।
दाम  अच्छा  लगाओ  सो  जाओ ।।

ख़ाब   में  वस्ल   है   मयस्सर  अब ।
रुख़ से चिलमन हटाओ सो जाओ ।।

बेवफ़ा   की    तमाम    बातों   का ।
यूँ  न  चर्चा   चलाओ  सो  जाओ ।।

बारहा   माँगने    की   आदत   से ।
काहिलों  बाज़ आओ  सो जाओ ।।

है  सियासत  का  फ़लसफ़ा  इतना ।
आग  घर  में   लगाओ  सो जाओ ।।

इतनी  जल्दी  भी  क्या मुहब्बत में ।
तुम  ज़रा  सब्र  खाओ  सो जाओ ।।

स्याह   रातों   में  बेसबब  मुझको ।
आइना  मत  दिखाओ  सो  जाओ ।।
         --नवीन मणि त्रिपाठी

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