तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

अब तो क़ातिल यहाँ बस्तियां हो गईं

212 212 212 212

जब से ख़ामोश वो सिसकियां हो गईं ।
दूरियां  प्यार  के  दरमियाँ  हो  गईं ।।

कत्ल कर दे न ये भीड़ ही आपका ।
अब तो क़ातिल यहाँ बस्तियाँ हो गईं ।।

आप   ग़मगीन  आये  नज़र  बारहा ।
आपके  घर  में  जब  बेटियां  हो गईं ।।

कैसी तक़दीर है इस वतन की सनम । 
आलिमों  से खफ़ा  रोटियां  हो गईं ।।

फूल को चूसकर  उड़  गईं  शाख  से ।
कितनी  चालाक ये तितलियां हो गईं ।।

दर्दो  गम पर मेरे  मीडिया  चुप  रही ।
उनकी अय्याशियां  सुर्खियां  हो  गईं ।।

हर जुबां हर कलम पर हैं ताले पड़े ।
कितनी मग़रूर ये हस्तियां हो गईं
।।

तब  से लूटा गया  देश  को  शान  से ।
जब से महंगी  यहाँ  कुर्सियां  हो गयीं ।।

शब्दार्थ
आलिम - पढा लिखा बुद्धिमान
बारहा -बार बार

            --नवीन मणि त्रिपाठी
              मौलिक अप्रकाशित

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