तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

मत कहो हो गया होशियार आदमी

212  212  212  212 

खो रहा दिन ब दिन ऐतबार आदमी ।।
मत कहो हो गया होशियार आदमी ।। 

अब  भरोसा न कीजै किसी पर यहाँ।
हो  रहा आदमी  का शिकार आदमी।।

दिन  गुजरता नहीं रात  ढलती  नहीं ।
कह गया मुझसे ये बेक़रार आदमी ।।

मांगिये न मदद अब किसी से यहां ।
एक दिन सर पे होगा सवार आदमी ।।

अब मुहब्बत को यारो  छुपाकर रखो ।
मन में पैदा न कर दे  दरार  आदमी ।।

साजिशें रच रहा दिल जलाने की वो।
दिल का जब से हुआ राजदार आदमी ।।

महफिलों में लगीं बोलियां हुस्न पर ।
जिस्म  का  जब  हुआ इश्तिहार आदमी ।

उसको हिन्दू मुसलमां में बांटा गया ।
मुल्क पर जब किया जाँ निसार आदमी ।।

ऐ सियासत  बता  दे जरा सच हमें ।
हो गया देश से  क्यूँ फ़रार  आदमी ।।

       -- नवीन मणि त्रिपाठी

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