तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

इंसां को है ज़रूरी फ़क़त प्यार की तलब ।।1

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नफ़रत की है तलब न किसी ख़्वार की तलब ।

इंसां को है  ज़रूरी  फ़क़त प्यार की तलब ।।1


आएंगे   बार   बार  वो   दीवाने  हुस्न  के ।

होगी  जिन्हें  यूँ  आपके  दीदार की तलब ।।2


पहले जुनूने इश्क़ में पागल तो हो के देख ।

पूछेंगे लोग तब कहीं  बीमार  की  तलब ।।3


बिकता रहा जो मीडिया ऐसे यहाँ ऐ दोस्त ।

जिंदा  नहीं  रहेगी  ये  अखबार  की तलब ।।4


दिन  रात   झूठ बोलते  नेता जी  बेहिसाब ।

कितना गिरेगी और ये अधिकार की तलब ।।5


जीना  मुहाल  हो  गया  है  तब  से  ऐ हुजूर ।

महंगाई  जब  से हो गयी सरकार की तलब ।।6


दो  वक्त  की  हों  रोटियां  कुनबे  के  वास्ते ।

इतनी ही बच सकी यहाँ लाचार  की  तलब ।।7


                       - नवीन मणि त्रिपाठी

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