तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

हमारे ख़्वाब यकीनन बिखर गए होते

 मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

1212 1122 1212 22/112


तुम्हारे   शह्र  में  गर  हम   ठहर गए  होते ।।

रक़ीब   पर  ही   हमारा  क़तर  गए  होते ।।


अगर  न  मिलती  हमें  तुमसे  ये पज़ीराई ।

हमारे  ख़्वाब  यकीनन  बिखर गए  होते ।।


किया है  जितना ज़माने ने तब्सिरा उन पर ।

न होता  इश्क़ तो  कब  के वो मर गए होते ।।


रहा  ये  अच्छा  नहीं  आये  मैक़दे  में  हम ।

वग़रना  ज़ाम  भी  हद  से  गुज़र गए होते ।।


वो  दफ़अतन  ही  अगर  मेरे  रूबरू  होता ।

तमाम   ज़ख़्म   पुराने   उभर   गए    होते ।।


असर वफाओं का कायम रखा मुझे वरना ।

नज़र से हम भी किसी दिन उतर गए होते ।।


हुजूर  इश्क़ निभाने  की  क्या ज़रूरत थी ।

बला से आप भी  हँसकर मुकर गए होते ।।


                - नवीन मणि त्रिपाठी

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