तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

अम्न से इतने फासले क्यूँ हैं

 


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हर तरफ़ यार दिलजले क्यूँ हैं ।

मुल्क  के पस्त  हौसले क्यूँ हैं ।।


कुछ तो साज़िश रची गयी होगी।

अम्न से इतने फ़ासले क्यूँ हैं ।।


बिक न जाए कहीं वतन मेरा ।

दुश्मनों के ये मरहले क्यूँ हैं ।।


कोई मजदूर से भी पूछे तो ।

पाँव में इतने आबले क्यूँ हैं ।।


दाम लगने तो दीजिये साहब ।

बेचने पर उतावले क्यूँ हैं ।।


कोई टैगोर बन नहीं सकता ।

फिर ये कायम ढकोसले क्यूँ हैं ।।


नींद इस बात से उड़ी उनकी ।

लोग मेरे मुकाबले क्यूँ हैं ।।


सबके चेहरे बुझे बुझे से जब ।

जश्न के झूठे चोंचले क्यूँ हैं।।


पूछती है सवाल जनता ये ।

बेसबब वो हमें छले क्यूँ हैं ।।


जब खरीदार ही नहीं आते ।

तो पकौड़े सभी तले क्यूँ हैं ।।


          ---  नवीन

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