तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

कहा है घर मे रहो जिसने बार बार ज़नाब ।

ग़ज़ल
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कहा है घर मे रहो जिसने बार बार ज़नाब ।
ज़रा सा कीजिये उस पे भी ऐतबार ज़नाब ।।1

बचा के रक्खें इसे जीस्त क़ीमती है ये ।
मिली कहाँ है कभी जिंदगी उधार ज़नाब ।।2

सुना है शह्र में क़ातिल बना है कोरोना ।
बढ़ाएं मत अभी मक़तूलों की क़तार जनाब ।।3

हुई है ऐसी हिफ़ाज़त जम्हूरियत से सुनो ।
नगर  से मौत  लिए लोग हैं फ़रार ज़नाब ।।4

बिछीं न होतीं ये लाशें वबा की मर्जी से ।।
किसी का मौत पे होता जो अख़्तियार ज़नाब ।।5

कजाएँ बाँट रहे हैं तमाम लोग यहाँ ।
अगर है जान बचानी तो होशियार जनाब ।।6

तसल्ली रखिये हटेगी सनम की पाबंदी ।
अभी न होइए इतना भी बेकरार ज़नाब ।।7

वबा - महामारी

             --डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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