तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

ख़्वाब सारे जल गए, मगर धुआँ उठा नहीं

 212 1212 1212 1212

ख़ाक  हो  गयी खुशी, था आग का पता नहीं ।

ख़्वाब  सारे  जल  गए, मगर धुआँ उठा नहीं ।।


पूछिये न  हाले   दिल  यूँ   बारहा  मेरा  सनम ।

ये  हमारे दर्दोगम का  सिलसिला  नया  नहीं ।।


इक नज़र से दिल तेरा  वो लूट कर चला गया ।

क्या कहूँ अभी तलक हैं लोग क्यूँ  खफ़ा नहीं ।।


रूबरू  था  हुस्न  मेरे और  दिल  मचल   गया ।

कैसे  कह  दूं आप  से  हुआ है  हादिसा  नहीं ।।


चाहतों का था  असर या  इश्क़ था नया नया ।।

क्यूँ सिहर गया बदन था जब तुझे  छुआ  नहीं ।


क्यूँ लिये थे मांग मुझसे मेरी धड़कनों को तुम ।

जब तुम्हें था दिल  सभाँलने का तज्रिबा नहीं ।।


बेख़ुदी   में  क्या  कहा न  पूछिये  हूजूर  अब ।

लफ़्ज़ जो बहक गए उन्हीं का  तर्जुमा  नहीं ।।


मयकशी  के बाद भी  बनी  रही यूँ   तिश्नगी ।

रिंद  जब  बता गए अभी ये दिल  भरा नहीं ।।


          मौलिक अप्रकाशित 

       डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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