तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

मेरे हक़ का निवाला जा रहा है

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ये  किस सांचे में ढाला  जा  रहा  है ।

मेरे  हक़  का  निवाला  जा  रहा  है ।।


मुनाफ़ा जिनसे हासिल था उन्हीं का ।

निकाला  अब  दिवाला  जा  रहा है ।


अज़ब  है  ये  तुम्हारी  मीडिया  भी ।

हमेशा  सच  को  टाला जा रहा है ।।


वतन को डस लिया वो सर्प देखो ।

जिसे ग़फ़लत में  पाला जा रहा है ।।


गुनाहों  को  छुपाने  के   लिए  क्यूँ ।

यूँ   पर्दा  ख़ूब  डाला  जा  रहा  है ।।


यहाँ  नीलामियों   का  दौर  साहब ।

वतन  कैसे  सँभाला  जा  रहा  है ।।


तरक़्की कर लिया है मुल्क ने अब ।

शिगूफा  यह  उछाला  जा रहा  है ।।


किसी जमहूरियत की ही जुबाँ पर।

लगाया  रोज़  ताला  जा   रहा   है ।।


फ़रेबी  शम्स  तू  कुछ   तो  बता  दे ।

ज़मीं  से  क्यूँ  उजाला  जा  रहा  है ।।


           डॉ नवीन मणि त्रिपाठी 

             मौलिक अप्रकाशित

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