तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

जब मेरा ज़िक्र उसकी कहानी में आएगा

 221 / 2121 / 1221 / 212


सैलाब कोई  आंखों  के  पानी  में  आएगा ।

जब मेरा ज़िक्र उसकी कहानी में आएगा ।।


यूँ  रोकिए  न  धार  मुहब्बत  की   है  नदी ।

दरिया को लुत्फ़ उसकी रवानी में आएगा ।।


ऊला को पढ़ के ख़ुद को तसल्ली न दीजिये ।

हर   दर्द  मेरे  शेर  के  सानी   में  आएगा ।।


सँभलेगा कैसे दिल तेरा कमसिन के हाथ में ।

उसको  तो  ये  शऊर  जवानी  में  आएगा ।।


इज़हारे इश्क़ हो गया उनको  ख़बर  न  थी ।

ग़म का भी कोई बोझ निशानी में आएगा ।।


ये  हुस्न  ढल  सकेगा  नहीं  इस  जहान में ।

यह  भी  गुमान  वक्त  पे फ़ानी में आएगा ।।


उतना ही दिल की बात बयाँ कर सकूँगा मैं ।

जितना   नशा  शराब   पुरानी  में  आएगा ।।


फ़ानी - नश्वर या नाशवान वस्तु


-- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें