तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

यूँ दफ़अतन तू मुझसे मेरी आरज़ू न पूछ

 221 2121 1221 212

यूँ दफ़अतन तू  मुझसे  मेरी  आरज़ू न  पूछ ।

इस दिल की बार बार नई जुस्तुजू  न पूछ ।।


हर  सिम्त  रहजनों की  है  बस्ती   दयार  में ।

कब तक बचेगी  यार  यहाँ  आबरू  न पूछ ।।


क़ातिल पे रख नज़र को तू खामोशियों के साथ ।

किसने  बहाया अम्न का  इतना  लहू  न पूछ।।


गिरगिट की  तरह  रंग  बदलते  जो लीडरान।

ऐ  ख़ाकसार  उनकी  कभी  सुर्ख़रु  न पूछ ।।


मस्ज़िद में आ गए हैं वो इतना तो कम नहीं ।

हैं  बे  वज़ू  या  बा  वज़ू ये  हाल तू न पूछ ।।


 रिंदों को मिल  रहा  है ख़ुदा  क्यूँ  शराब में ।

ज़ाहिद तू  मेरी मैक़दे की गुफ़्तगू न पूछ ।।


पूछा पता सनम का तो उसने ये कह दिया ।

मतलब की बात करले मगर फालतू न पूछ ।।


फैली  ख़बर  है  जब  से तेरी आशनाई की ।

कितने  जनम  लिए  हैं  हमारे  अदू  न पूछ ।।


कुछ तो  फ़ज़ा  के  राज़ को पर्दे में रहने दे ।

ख़ुशबू  किधर  से आती  है ये चार  सू न पूछ ।।


अल्फ़ाज़  कम  पड़ेंगे  बयां  के  लिए मेरे ।

मंजर  था  कैसा  हिज़्र का तू हूबहू न पूछ ।।


       डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें