तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई सियासत


ग़ज़ल

2122  2122 2122 2122

कैसे कह दें मुल्क में  कितनी निखर आयी सियासत ।

क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई  सियासत ।।


चाहतें  सब  खो  गईं और खो  गए  अम्नो  सुकूँ  भी ।

इक  तबाही  का  लिए  मंज़र जिधर आई सियासत ।।


नफ़रतों  के  ज़ह्र  से भीगा मिला  हर  शख़्स मुझको ।

कुर्सियों  के  वास्ते   जब  गाँव- घर  आई   सियासत।।


मन्दिरो   मस्ज़िद  में  बैठे   खून  के   प्यासे  बहुत  हैं ।

क्या हुआ इस मुल्क में जो इस कदर आई सियासत ।।


आदमी  का  ख़्वाब   देखो   यूँ  ठगा  सा रह गया है । 

जाने कितने वादे  करके  फिर मुकर आई सियासत ।।


कर  लिया  मैंने  जो  सज़दा उस ख़ुदा  के  नाम  पर।

बात बस इतनी सी थी लेकिन उभर आई सियासत ।।


साजिशें  बुनने  लगी   वो  अन्नदाता  के  लिए  अब ।

इस तरह मतलब परस्ती  पर  उतर आई  सियासत ।।


     --डॉ नवीन मणि त्रिपाठी



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें