तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

दरिया को समुन्दर की वसीयत नहीं मिलती

 ग़ज़ल 

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हातिम के मुक़द्दर में तो इशरत नहीं मिलती ।

दरिया को समुन्दर की वसीयत नहीं  मिलती ।।


यूँ  तो  है  बिकाऊ  यहाँ  हर आदमी लेकिन ।

इंसान  को  इंसान की कीमत  नहीं  मिलती ।।


इज़हार   ज़रूरी   है  मुहब्बत  का  सनम   से ।

चाहत से फ़क़त हुस्न की कुर्बत नहीं  मिलती ।।


लौटा दे  कोई  मुझको मेरा  लूटा  हुआ  दिल ।

दुनिया मे अभी  इतनी शराफ़त नहीं  मिलती ।।


वो  लोग  क़रीब  आने  की कोशिश में लगे हैं ।

जिनसे  मेरे  महबूब  की  सूरत  नहीं  मिलती ।।


हासिल हुआ है इश्क़  तो  परदे  में  रखा  कर।

यूँ  ही  किसी  को यार ये दौलत नहीं मिलती ।।


दिन  इतने  बुरे  आ  गए   ईमान  के   साहब ।

नीयत  हो  अगर  साफ़ तो बरक़त नहीं मिलती ।।


इनकार की हस्ती को यूँ समझा तो  करें  आप ।

हर बात पे गर हाँ हो तो  इज़्ज़त नहीं  मिलती ।।


उड़ जाती हैं क्यूँ तितलियां उस गुल के चमन से ।

जिस फूल के आगोश में निकहत नहीं मिलती ।।


हातिम - दाता

इशरत - भोग विलास

आगोश - गोद

निकहत  - खुशबू


      -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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