तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

ग़ज़ल

 ग़ज़ल 


1222 1222 122

वहाँ   सरकार   जनता   ढो   रही   है ।

जहाँ  की  नीति  बस "ठोको" रही  है ।।1


नज़र     आई    है   तानाशाही   ऐसे ।

मियाँ    जमहूरियत  ही  रो   रही   है ।।2


वबा  का  दौर  है,  ऐ  रब   बचा  ले।

कि अब  इंसानियत भी  खो रही है ।।3


बनाएं   आपदा   को   आप  अवसर ।

अदालत    मुद्दतों  से  सो   रही   है ।।4


हम   उनके  वास्ते   बस   आंकड़े   हैं ।

फ़क़त  लाशों की  गिनती  हो रही है ।।5


न  बच   पाए  कहीं  अम्नो   सुकूँ   ये ।

सियासत   ज़ह्र   इतना  बो   रही   है ।।6


करें  उम्मीद  क्या  हम  ज़िंदगी  की ।

हमारी   फ़िक्र  कब   उनको  रही  है ।।7


       --नवीन

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