तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

कौन कितने में बिका है ये न चर्चा कीजिये

 2122 2122 2122 212



2122 2122 2122 212


बिक रही इंसानियत जब, आप सौदा कीजिए ।

कौन कितने में बिका है ये न चर्चा कीजिये ।।


स्याह शब का भी गुज़रना तय है यारों सुब्ह तक ।

घर जलाकर शह्र में अब मत उजाला कीजिये ।।


कौन समझे दर्द अब मजदूर का इस देश में ।

हर सियासत दाँ का बस फ़रमान देखा कीजिये ।।


कौन होगा साथ अपने मुफ़लिसी के दौर में ।

दोस्तों की दोस्ती को आजमाया कीजिये ।।


कामयाबी के लिए कुछ सब्र तो रखिये ज़नाब ।

इस तरह मत आसमां सर पर उठाया कीजिये ।।


मुद्दतों से देखिये है मुन्तज़िर दिल का मकां ।

आप इस घर में भी थोड़ा आया जाया कीजिए ।।


जब गमों के बोझ से दबने लगी है जिंदगी ।

रफ़्ता रफ़्ता फ़िक्र भी अपनी उड़ाया कीजिये ।।


आँखें  करती हैं बयां हर दर्द को महफ़िल में जब ।

बारहा इन आंसुओं को मत छुपाया कीजिये ।।


        -डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

स्याह शब का भी गुज़रना तय है यारों सुब्ह तक ।

घर जलाकर शह्र में अब मत उजाला कीजिये ।।


कौन समझे दर्द अब मजदूर का इस देश में ।

हर सियासत दाँ का बस फ़रमान देखा कीजिये ।।


कौन होगा साथ अपने मुफ़लिसी के दौर में ।

दोस्तों की दोस्ती को आजमाया कीजिये ।।


कामयाबी के लिए कुछ सब्र तो रखिये ज़नाब ।

इस तरह मत आसमां सर पर उठाया कीजिये ।।


मुद्दतों से देखिये है मुन्तज़िर दिल का मकां ।

आप इस घर में भी थोड़ा आया जाया कीजिए ।।


जब गमों के बोझ से दबने लगी है जिंदगी ।

रफ़्ता रफ़्ता फ़िक्र भी अपनी उड़ाया कीजिये ।।


आँखें  करती हैं बयां हर दर्द को महफ़िल में जब ।

बारहा इन आंसुओं को मत छुपाया कीजिये ।।


        -डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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