तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

बे सबब रूठ के जाने की ज़रूरत क्या थी

 ग़ज़ल 

2122 1122 1122 22


बे सबब रूठ के जाने की ज़रूरत क्या थी ।

आसमाँ सर पे उठाने की ज़रूरत क्या थी ।।


मुझको तन्हा ही तुम्हें छोड़ के जाना था तो ।

दूर तक साथ निभाने की ज़रूरत क्या थी ।।


होश में था ही नहीं मैकदे में जो  साकी ।

फिर उसे और पिलाने की ज़रूरत क्या थी ।।


मैं तेरी रूह को पढ़ता रहा ता उम्र सनम ।

दर्दो ग़म मुझसे छुपाने की ज़रूरत क्या थी ।।


जीस्त के वास्ते अच्छा था मुहब्बत का भरम ।

आइना हमको दिखाने की ज़रूरत क्या थी ।।


जब तेरे बस में  नहीं था तू भुला दे मुझको ।

ख़त मेरा पढ़ के जलाने की ज़रूरत क्या थी ।।


दिल में नफरत की यूँ  दीवार बनाकर हमसे ।

इस तरह हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या थी ।।


आज़ महफ़िल में सरेआम उठाकर यूँ नक़ाब ।

आग पानी में लगाने की ज़रुरत क्या थी ।।


इक मुलाक़ात ही काफ़ी थी तबाही के लिए ।

ख़्वाहिशें और जगाने की ज़रुरत क्या थी ।।


         --नवीन मणि त्रिपाठी

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