तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

ऐ मुक़द्दर मेरे हालात को बहतर कर दे

 2122 1122 1122 22

ऐ   मुक़द्दर   मेरे  हालात   को  बहतर  कर  दे ।

चन्द  लम्हात   मुहब्बत  के   मयस्सर  कर   दे ।।


कैसे  देखूं  मैं. ख़ुदा  मुल्क़  ये  बिकता अपना ।

कुछ दिनों के ही लिए दिल मेरा पत्थर कर  दे ।।


मीडिया  चुप    यहाँ   धृतराष्ट्र   बनी  बैठी   है ।

भारती   मां   पे   कोई  चीर  निछावर  कर  दे ।। 


इतनी खुदगर्ज़ सियासत है  वतन  की  साहब ।

ये  किसी  दिन  न  हमें गांव में  बेघर  कर  दे ।।


जुबाँ पे  उसके भरोसा  भी  भला क्या  कीजै ।

अपने वादे को पलट काम जो दीगर  कर  दे ।।


गर  बचाना  है  तुझे अम्नो  सुकूँ  भारत   का ।

शह्र  को  अपनी हिफाज़त में मुनव्वर कर दे ।।


घर से निकलो न मियाँ नफरतों की बारिश है ।

तेज  बरसात  तुम्हे  भी  न  मुअत्तर  कर  दे ।।


अब   उसे   कौन   बचाएगा   ज़रा   पूछो  तो ।

ये ज़माना  ही नज़र में  जिसे  कमतर कर दे ।।


तेरा  तूफ़ान  से  हर   हाल  में  लड़ना अच्छा ।

इससे  पहले  तेरी  बस्ती वो समुंदर  कर  दे ।।


उसके खाते से यूँ मुफ़लिस को न भेजें  चंदा ।

सारी दौलत जो तिज़ोरी  के  ही अंदर कर दे ।।


          --नवीन मणि त्रिपाठी

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