ग़ज़ल
गुलों पर शोखियां, बहकी अदाएं ।
बदलती जा रही हैं अब हवाएं ।।
बिखरती है यकीं के बिन जो अक्सर ।
मुहब्बत बारहा मत आजमाएं ।।
मेरी किस्मत ही खुल जाए अगर वो।
मेरे घर तक कभी तशरीफ़ लाएं ।।
उन्हें फुर्सत नहीं है एक पल की ।
अकेले हम कहाँ तक दिल जलाएं ।।
वो बिन बरसे ही गुज़री हैं यहां से
जो सावन में दिखीं काली घटाएं ।।
जिन्हें हर ज़ख्म पर है मुस्कुराना ।
उन्हें हम हाले दिल भी क्या सुनाएं ।।
न हूरों से करो उम्मीद कोई ।
वफ़ा करती कहाँ हैं अप्सराएँ ।।
-नवीन
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