तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

गुलों पर शोखियां, बहकी अदाएं

 ग़ज़ल


गुलों पर शोखियां, बहकी अदाएं ।

बदलती  जा  रही  हैं अब हवाएं ।।


 बिखरती है यकीं के बिन जो अक्सर ।

मुहब्बत बारहा मत आजमाएं ।।


मेरी किस्मत ही खुल जाए अगर वो।

 मेरे घर तक कभी तशरीफ़ लाएं ।।


उन्हें फुर्सत नहीं  है एक पल की ।

अकेले हम कहाँ तक दिल जलाएं ।।


वो बिन बरसे  ही गुज़री हैं यहां से 

जो सावन में दिखीं काली घटाएं ।।


जिन्हें हर  ज़ख्म  पर है मुस्कुराना ।

उन्हें हम हाले  दिल भी क्या सुनाएं ।।


न हूरों से करो उम्मीद कोई ।

वफ़ा करती कहाँ हैं अप्सराएँ ।।


          -नवीन

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