ग़ज़ल
2122 1122 1122 22
कोई उल्फ़त यहाँ बिक जाएगी आसार नहीं ।।
इश्क़ तो इश्क़ है ये इतना भी लाचार नहीं ।।1
सच की उम्मीद भला कैसे रहे जिंदा वहाँ ।
सच्ची खबरों को जहाँ छापता अख़बार नहीं ।।2
गोलियां उसने भी खायी है मेरी सरहद पर ।
जिस पे इल्ज़ाम है वो मेरा वफ़ादार नहीं ।।3
रोज़ रहती है तेरे पास ये शब भर जानां ।
रोक ले रूह को ऐसी कोई दीवार नहीं ।।4
पास आओ तो मेरे दिल को सुकूं मिल जाये ।
और तन्हाई में रहने को मैं तैयार नहीं ।।5
वो तबस्सुम ,वो अदा, और झुकी सी नज़रें ।
कैसे कह दूं कि उन्हें मुझसे हुआ प्यार नहीं ।।6
मत कहो मुझसे अभी ईद मुबारक़ यारो ।
एक मुद्दत से हुआ चाँद का दीदार नहीं ।।7
-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
इतना भी लाचार नहीं .....सन्दर्भ कोई भी हो.
जवाब देंहटाएंवाह !
रोज़ रहती है तेरे पास ये शब भर जानां ।
जवाब देंहटाएंरोक ले रूह को ऐसी कोई दीवार नहीं ।।4
वाह!!!!
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंरास्ता एक था, हम इश्क़ के दीवानों का,
क़दो-गेसू (नख-शिख वर्णन) से चले, दारो-रसन (फ्हंसी का फंदा) तक पहुंचे.
कमाल की गज़ल
जवाब देंहटाएंबधाई
रोज़ रहती है तेरे पास ये शब भर जानां ।
जवाब देंहटाएंरोक ले रूह को ऐसी कोई दीवार नहीं ।
वाह !
बहुत खूब है हर शेर।
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👍👍
जवाब देंहटाएंपास आओ तो सुकूं मिल जाए,और तन्हाई में,,,,,,,,,,,,,, क्या बात है 👌
जवाब देंहटाएं