तीखी कलम से

बुधवार, 30 मार्च 2022

आये हैं जब भी शाम को तेरी गली से हम

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कब  तक  सहेंगे  दर्द  यहाँ  ख़ामुशी  से हम।

करते   रहे   सवाल  यही   ज़िंदगी   से  हम ।।1


यूँ हिज़्र की न चर्चा करो हम से आजकल ।

निकले  हैं जैसे -तैसे  सनम  तीरगी  से  हम ।।2


शंकर  की  तर्ह  या कभी सुकरात की तरह ।

पीने  लगे  हैं ज़ह्र भी अब तो  खुशी  से हम ।।3


पाबंदियों   के   दौर  में  ये  पूछिये  न  आप ।

कितना  करेंगे  सच  को बयाँ  शाइरी  से हम ।।4


साक़ी  ने  जाम  तक  न  दिया  मैक़दे में तब ।

जब   बेक़रार  थे  वहाँ  तिश्ना-लबी  से  हम ।।5


शब भर न आई  नीद हमें  कोशिशों  के बाद ।

आये  हैं  जब  भी शाम  को तेरी गली से हम ।।6


तीरे  नज़र  का   था वो  निशाना  कमाल का ।

होते   रहे   तबाह   तेरी  आशिक़ी   से  हम ।।7


              --नवीन

8 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (01-04-2022) को चर्चा मंच       "भारत ने सारी दुनिया को, दिया शून्य का ज्ञान"   (चर्चा अंक-4387)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  3. नवीन जी ,
    बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ ।।

    खूबसूरत ग़ज़ल ....
    जवाब नही मिला ज़िन्दगी से कभी ।
    सहते रहे दर्द ख़ामुशी से सभी ।।

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  4. कितना करेंगे सच को बयाँ शाइरी से हम
    बेहतरीन/उम्दा सृजन ।
    हर शेर लाजवाब 👌

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