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बज्र बन कर के दधीची को जिया करते हैं ।
हवा के रुख को भी हम मोड़ लिया करते हैं ।
बन के कौटिल्य बचाते है देश को अक्सर ।।
धर्म टूटे तो परशुराम बना करते है ।।
आज भी ताजो तखत पर वो बशर रखता है ।
अभी भी मुल्क चलाने का हुनर रखता है ।।
उससे टकराने की हिम्मत न कीजिये साहब ।
वो बरहमन है जमाने मे असर रखता है ।
देश आगे ही बढ़े फिक्र किया करते हैं ।
ये ज़माने का ज़हर रोज पिया करते हैं ।
ये तो ब्राह्मण है अजब इनकी भी फितरत सीखो ।
ये तो दुश्मन को भी आशीष दिया करते हैं ।
1212 1221 1212 112
कुछ ऐसी हस्ती है मेरी जिसे भुला न सके
मिटा रहे थे जो सदियों से वो मिटा न सके ।।
बना है आग में तप के ये कीमती सोना ।
जलाने वाले तो हमको कभी जला न सके ।।
---***भगवान् परशुराम को समर्पित छंद***---
स्वाभिमान सर्वथा प्रतीक बन जाता यहॉं ,
न्याय पक्ष के प्रत्यक्ष पूर्ण परिणाम हैं ।
मातृ शीष काट के प्रमाण जग को है दिया ,
सिद्ग साधना के प्रति प्रभु निष्काम हैं ।।
सर्वनाश पापियों का वीणा वो उठा के चले ,
फरसे में लहू के ना दिखते विराम हैं ।
अभिमान चूर किया राजवँशियो का सदा,
दण्ड की प्रचण्डता में वीर परशुराम हैं।।
नीति के नियंता हैं अत्याचारियो की मृत्यु ,
निर्बल मनुज के ढाल बन जाते हैं ।
भृगु के प्रपौत्र जमदग्नि के लाल आज ,
न्याय हेतु क्रुद्ध विकराल बन जाते हैं ।।
दुष्ट व् लुटेरों पे प्रत्यंचा खीचकर खींच कर ।
पापियों के मन का मलाल बन जाते हैं ।
राज तन्त्र चोर हो, निरकुंश हों नीतियां तो ,
प्रकट हो परशुराम काल बन जाते हैं ।।
शिव के हैं शिष्य पर स्वयं शिव अंश भी हैं ,
विष्णू के षष्ठ अवतार में महान हैं ।
धर्म संस्थापना के हेतु है समर्पित ,
परशुराम संहार के ही भगवान हैं ।।
नीचता के वंशजों को गर्भ में मिटाने वाले ,
असहाय प्राणियो के मुख्य अभिमान हैं ।
एक दन्त नाम गणपति का उन्होंने दिया,
माँ के जीवनदान के वो पूर्ण वरदान हैं ।।
देता हूँ सन्देश आज परशुराम वंशजों को ,
अत्याचारी शासकों को जड़ से मिटाइये ।
जाति पाँति राजनीति जो भी आज करते हैं ,
उनकी निकटता से दूर हट जाइए ।।
हक रोजगार का जो छीनते लुटेरे आज ,
बच्चों के ना हाथ में कटोरा पकडाइये ।
हक के लिए ये बलिदान मांगता है कौम ,
फरसा उठा के परशुराम बन जाइए ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
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