तीखी कलम से

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

भगवान परशुराम जयंती पर

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बज्र  बन  कर  के  दधीची  को जिया करते हैं ।

हवा  के रुख को भी हम  मोड़ लिया करते हैं । 

बन के कौटिल्य  बचाते है  देश को अक्सर ।।

धर्म   टूटे   तो   परशुराम   बना    करते   है  ।।


आज भी ताजो  तखत  पर वो बशर रखता है ।

अभी  भी  मुल्क  चलाने  का  हुनर  रखता है ।।

उससे टकराने की हिम्मत न कीजिये साहब ।

वो  बरहमन  है  जमाने  मे  असर  रखता है ।


देश  आगे  ही  बढ़े  फिक्र  किया   करते  हैं ।

ये  ज़माने  का  ज़हर  रोज  पिया  करते  हैं ।

ये तो ब्राह्मण  है अजब इनकी भी फितरत सीखो ।

ये  तो दुश्मन  को भी  आशीष  दिया  करते हैं । 


1212 1221 1212 112

कुछ  ऐसी हस्ती है मेरी जिसे भुला न सके 

मिटा  रहे  थे जो सदियों से वो मिटा न सके ।।

बना  है  आग  में  तप  के ये  कीमती सोना ।

जलाने  वाले  तो  हमको  कभी  जला न सके ।।


---***भगवान् परशुराम को समर्पित छंद***---


स्वाभिमान  सर्वथा  प्रतीक   बन  जाता  यहॉं ,

न्याय  पक्ष   के   प्रत्यक्ष   पूर्ण   परिणाम  हैं ।

मातृ शीष काट के प्रमाण जग  को  है  दिया ,

सिद्ग  साधना  के   प्रति   प्रभु   निष्काम  हैं ।।

सर्वनाश पापियों  का वीणा वो उठा के चले ,

फरसे  में   लहू  के  ना   दिखते   विराम  हैं ।

अभिमान  चूर  किया राजवँशियो  का  सदा,

दण्ड  की  प्रचण्डता  में   वीर  परशुराम  हैं।।



नीति के  नियंता  हैं अत्याचारियो  की  मृत्यु ,

निर्बल   मनुज   के   ढाल    बन   जाते   हैं ।

भृगु  के  प्रपौत्र  जमदग्नि   के  लाल   आज ,

न्याय  हेतु   क्रुद्ध  विकराल   बन  जाते  हैं ।।

दुष्ट व्  लुटेरों  पे  प्रत्यंचा  खीचकर खींच कर ।

पापियों  के  मन  का  मलाल  बन  जाते  हैं ।

राज  तन्त्र  चोर हो,  निरकुंश हों  नीतियां   तो ,

प्रकट  हो  परशुराम   काल   बन   जाते  हैं ।।




शिव  के हैं  शिष्य पर  स्वयं शिव  अंश  भी  हैं ,

विष्णू   के   षष्ठ   अवतार    में    महान   हैं ।

धर्म     संस्थापना    के    हेतु      है    समर्पित ,

परशुराम    संहार    के    ही    भगवान   हैं ।।

नीचता के  वंशजों को  गर्भ  में  मिटाने  वाले ,

असहाय  प्राणियो   के  मुख्य  अभिमान  हैं ।

एक  दन्त   नाम  गणपति का  उन्होंने  दिया,

माँ  के  जीवनदान  के  वो  पूर्ण  वरदान  हैं ।।





देता  हूँ सन्देश   आज   परशुराम   वंशजों   को ,

अत्याचारी   शासकों  को  जड़  से  मिटाइये ।

जाति पाँति राजनीति जो भी  आज  करते  हैं ,

उनकी    निकटता    से   दूर    हट   जाइए ।।

हक  रोजगार   का  जो   छीनते   लुटेरे  आज ,

बच्चों  के   ना   हाथ  में   कटोरा  पकडाइये ।

हक  के  लिए ये  बलिदान  मांगता   है   कौम ,

फरसा   उठा    के   परशुराम    बन   जाइए ।। 


                                             -नवीन मणि त्रिपाठी





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