तीखी कलम से

रविवार, 30 जून 2024

दुनिया को मुहब्बत से जलन कम नहीं होती

 ग़ज़ल

221 1221 1221 122

चेहरे पे मुहब्बत की शिकन कम नहीं होती ।

माशूक़ की ख़ुशबू ए बदन कम नहीं होती ।।1


उल्फ़त  की  है ये  ज़ुस्तज़ू दीवानगी का दौर ।

मौजों की जो साहिल से लगन कम नहीं होती ।।2


बढ़ती ही चली जाती है ये बोझ की माफ़िक ।

इस ज़िन्दगी की यार थकन कम नहीं होती ।।3


चाहत हो अगर दिल मे मुलाकात की साहब ।

साँसों की शबे वस्ल तपन कम नहीं होती ।।4


कह दीजिये जो मन में हो हर बात सरे बज़्म ।

ख़ामोशियों से मन की घुटन कम नहीं होती ।।5


मुश्किल है बहुत चलना सदाक़त की डगर पर । 

इस राह में काँटों की चुभन कम नहीं  होती ।।6


नफ़रत  के  नगर  में  न करें  प्यार  की  चर्चा ।

दुनिया को मुहब्बत से जलन कम नहीं होती ।।7


            --नवीन मणि त्रिपाठी

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