तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

हिंदी ग़ज़ल

 ग़ज़ल


2122 2122 2122 2122


अति विवशता में मनुज क्यों मृत्यु का करता वरण है ।

हो गया क्या काल का ही इस धरा पर अवतरण है ।। 1


आत्मरक्षा की कला को आप विकसित कीजिये अब ।

यह प्रलय के आगमन का वस्तुतः पहला चरण है ।।2


चेतना भय मुक्त हो अब ,शक्ति की हों साधनाएं  ।

कह रही गीता निरन्तर जन्म क्या और क्या मरण है ।।3


व्यर्थ आशाएं न पालें रेल की सम्पत्तियों से ।

राजनैतिक मूल्य का जब हो रहा  प्रति दिन क्षरण है ।।4


अर्थ लोलुप है व्यवस्था , छा गए धन पशु यहाँ पर ।

तौलते जीवन से मदिरा , देश का यह सम्भरण है ।।5


कौन रोके कौन टोके झूठ का जयकार मित्रो ।

मीडिया का अतिक्रमण तो सभ्यताओं का हरण है ।। 6


        -नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें