तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

हिंदी ग़ज़ल

 ग़ज़ल

2122 2122 2122


मृत्यु  के अनुरक्ति का अभिसार है क्या ।

मुक्ति  पथ  पर चल पड़ा संसार है क्या ।।


काल शव से कर चुका  श्रृंगार  है  क्या ।

यह प्रलय का इक नया हुंकार  है  क्या ।।


आत्माओं  का   समर्पण  हो  रहा   है ।

दृष्टिगोचर  मृत्यु  का  उदगार  है क्या ।।


कर्म  की अपने समीक्षा कीजिये  कुछ ।

इस धरा पर आपका अधिकार है क्या ।।


विष को  नदियों में  निरन्तर घोलते तुम।

सृष्टि के प्रति यह कोई मनुहार है  क्या ।।


तृप्त   हो   मानव  पिपासा  रक्त  से  ही ।

तर्क  में  कुछ  सत्य  का आधार है क्या ।।


शस्त्र    संहारक   बनाते    ही   रहे  हम ।

यह प्रकृति के मर्म को स्वीकार है  क्या ।।


दिख रही ज्वाला यहां प्रतिशोध की अब ।

अग्नि यह उन्माद के अनुसार  है  क्या ।।


काट  दे  जो  आसुरी  आसक्तियों  को ।

अब किसी तलवार  में वो धार है क्या ।।


आ रहे  पैदल श्रमिक अपने  घरों  तक ।

इसमें  कोई  आपका  उपकार है  क्या ।।


हो  रही   निर्दोष  जनता  नित्य  शोषित ।

छल कपट का चल रहा व्यापार है क्या ।।

     

             मौलिक अप्रकाशित


         -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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